क्या नई पहल करेगा गाजियाबाद ? Will Ghaziabad take a new initiative?



       गाजियाबाद कहिन ................ !


प्रदेश में चुनावी विगुल बज गया है। इस बार सबसे अलग लोकतंत्र का यह पर्व मनाया जा रहा जिसमें तमाम तरह की पाबंदियां है। भारत के स्वतंत्र इतिहास में ऐसा कभी देखने व सुनने को नहीं मिला होगा, क्योंकि यह चुनाव कोरोना महामारी के साये में हो रहा। इसबार आपकी भी जिम्मेदारी पहले से ज्यादा बढ़ गई है। आपको इस महामारी से स्वंय बचना है और दूसरे को भी बचाना है साथ ही लोकतंत्र के पर्व को हर्षोलाष के साथ मनाना है। भारतीय इतिहास में लोकतंत्र आदिकाल से अपनी जड़े जमाये हुए है, इसे और ज्यादा मजबूत करने की जिम्मेदारी हम सब के कंधे पर है। 

हालांकि आज देश में लोकतंत्र का सबसे वीभत्स चेहरा हमें देखने को मिल रहा है, जिसका नतीजा है कि लोग नेतृत्वकर्ता को ही संदेह के नजर से देख रहे हैं। इसके लिए नेतृत्वकर्ता तो बाद में जिम्मेदार माना जायेगा पर पहली जिम्मेदारी हम सब की ही है। जिसे बदलने या परिवर्तन करने की क्षमता हम लोगों में है और हम लोग सोच लें तो इसे बदल भी सकते हैं, क्योंकि यही लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी है। प्राचीन इतिहास हमें बताता है कि पहले तानाशाही शासकों ने अपने देश की जनता पर शासन की। बाद में अपने देश के ही कुछ गद्दारों के कारण पहले हमारे पूर्वजों को मुगलों का गुलाम बनना पड़ा फिर हम अंग्रेजों का गुलाम बन गए। लोगों की जागरुता कहे या गुलामी से आजीजी हमारे पूर्वजों ने स्वतंत्र सांस के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और हम गुलामी के चुगुल से मुक्त होकर आजादी की स्वच्छंद सांस ले पाए। इस आजादी के लिए बहुत बड़ी कुर्बानी भारतवासियों को देना पड़ा जिसमें सबकी सामुहिक भूमिका रही। सभी धर्म, समुदाय, मजहब, आचार - विचार और संस्कृति का तारतमय ही भारत की सुंदरता को निखार पाया। 

हमारे पूर्वजों ने आजादी में सबकी भूमिका और सहयोग को देखते हुए ही भारत को लोकतात्रिक गणराज्य बनाने का निर्णय किया और संविधान का निर्माण कर देश को संप्रभु राष्ट्र घोषित किया। संविधान ने लोकतंत्र के माध्यम से देश के आवाम के हाथ में सबसे बड़ी ताकत उसके मतदान को दिया जिससे वह अपना शासक अपनी इच्छा से चुन सके। जब संविधान में मतदान का अधिकार दिया गया होगा तब हमारे पूर्वजों ने यह नहीं सोचा होगा कि आगे चलकर ऐसा विकृत रूप भी लोकतंत्र का सामने आयेगा। इसके लिए शासक, नेतृत्वकर्ता या साम, दाम दंड व भेद के माध्यम से लोकतंत्र का चीर हरण करने वाला जिम्मेदार नहीं, बल्कि हम जिम्मेदार है, क्योंकि इसकी रक्षा करने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है। जब तक आम जन अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेगा तब तक सिंहासन के भूखे ये भेड़िया लाकेतंत्र को तो तार - तार करेंगे ही आजाद भारत में हमें अपना मानसिक गुलाम भी बनाकर रखेंगे। 

तो आइए ! एक बार पहल करें और इसकी शुरूआत गाजियाबाद जिले से ही क्यों न की जाए। स्वच्छ और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आपका यह पहल विश्व के क्ष्तििज पर गाजियाबाद शहर का नाम सुनहले अक्षरों में अंकित करेगा। सिर्फ आपको चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे नेताओं में से ही हीरे की परख करना है और उसे इस बार के चुनाव में जीत का सेहरा बांधना है। हां, आपके लिए हीरे की परख कर पाना थोड़ा मुश्किल तो है पर मुमकिन नहीं है। कोई तो होगा जिसमें हीरे की थोड़ी चमक तो होगी। गाजियाबाद जिले के पांच विधानसभा सीटों पर 2017 के चुनाव में बीजेपी ने कब्जा जमाया था। पांचों विधायकों के कार्यशैली, व्यवहार और उनकी कुशलता से आप भली भांति परिचित हो गए होंगे। पांचों विधानसभा क्षेत्र के वर्तमान विधायक के कार्यशैली अगर उस क्षेत्र के जनता को अच्छी लगी हो और वह उसे एक मौका और देना चाहती हो तो अच्छी बात होगी, लेकिन जरा सा भी संदेह हो तो अपनी लोकतांत्रिक शक्ति को पहचानते हुए नई पहल की शुरूआत करें। इस कार्य में सर्वोदय शांतिदूत अपके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार है। आइए बदलाव की नई सवेरा लाएं । जय हिन्द ! 





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